गभग नौ करोड़ रुपए के खर्च से वनविभाग के 4.76 लाख कर्मचारियों ने अनुमान लगाया है कि भारत में बाघों की संख्या पिछले चार साल में 1411 से बढ़कर 1706 हो गई है. इस तरह बाघों की संख्या में 295 की वृद्धि हुई है.

ये आंकड़े दिल्ली में आयोजित बाघ संरक्षण पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में जारी किए गए हैं.

पिछली बार बाघों की गणना 2006 में की गई थी और उसके बाद ताज़ा आंकड़े 2010 की गिनती के बाद आए हैं.

इस संख्या में सुंदरबन में गिने गए 70 बाघ भी शामिल हैं जिन्हे 2006 में नहीं गिना गया था.

महाराष्ट्र, उत्तराखंड, असम, कर्नाटक में वृद्धि

ये आंकड़े भारत के वन और पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने पेश किए हैं.

आंकड़ों को पेश करते हुए जयराम रमेश ने कहा, "भारत के तराई क्षेत्र और दक्षिण भारत में बाघों की संख्या में बढ़ोतरी होना काफ़ी सकारात्मक संकेत है. हालांकि मध्य भारत और पूर्वोत्तर भारत के इलाकों में उपलब्ध क्षेत्र के मुकाबले वहाँ बाघों की संख्या काफ़ी कम है जो चिंता का विषय है."

भारत के तराई क्षेत्र और दक्षिण भारत में बाघों की संख्या में बढ़ोतरी होना काफ़ी सकारात्मक संकेत है. हालांकि केंद्रीय भारत और पूर्वोत्तर भारत के इलाकों में उपलब्ध क्षेत्र के मुकाबले में वहाँ बाघों की संख्या काफ़ी कम है जो चिंता का विषय है

जयराम रमेश, वन और पर्यावरण मंत्री

भारत में बाघों को बचाने के लिए चली मुहीम के बाद ये नतीजे काफ़ी महत्वपूर्ण माने जा रहे है.

जिन राज्यों में बाघों की संख्या बढ़ी है, वे हैं उत्तराखंड, महाराष्ट्र, असम, तमिलनाडु और कर्नाटक.

मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश में बाघों की संख्या में गिरावट दर्ज हुई है.

मध्य प्रदेश और आंध्रप्रदेश में बाघों की संख्या में गिरावट की वजह पर जयराम रमेंश ने कहा, "मुझे लगता है कि क़ानूनी प्रतिबंध के बावजूद शिकार और बाघ के पर्यावरण क्षेत्र को ख़तरा बाघों की संख्या में कमी की सबसे बड़ी वजह है."

योजना आयोग के उपाध्यक्ष मॉंटेक सिंह आहलुवालिया और कंपनी व जलसंसाधन मामलों के मंत्री सलमान खुर्शीद भी इस अवसर पर मौजूद थे.

जयराम रमेश ने योजना आयोग के उपाध्यक्ष मॉंटेक सिंह आहलुवालिया के सामने को बाघ बचाव अभियान के लिए पैसा बढ़ाने की माँग रखी और उन्होंने इस पर विचार करने का आश्वासन दिया.

जयराम रमेश ने कहा कि भारत के लिए विकास की गति को बरक़रार रखना और बाघों को बचाना दोनों ज़रूरी है. इन दोनों लक्ष्यों के बीच संतुलन बनाना सबसे बड़ी चुनौती है.