
करीब एक दशक की अवधि में यह पहला मौका है जब देश में बाघों की संख्या में कुछ इजाफा हुआ है। ताजा गणना के मुताबिक पिछले चार वर्षों के दौरान देश के जंगलों में बाघों की संख्या में 12 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है और इसके आधार पर उनकी अनुमानित संख्या 1706 मानी गई है।
इस बढ़ोतरी में ज्यादा योगदान सुंदरवन के बाघों का है जिन्हें पिछली गणना में नहीं गिना जा सका था। भारत में , जहां पूरी दुनिया के मुकाबले सबसे ज्यादा बाघ पाए जाते हैं , बाघों की गिनती बढ़ने से इस उम्मीद को थोड़ा बल मिला है कि अब शायद इस सदी तक वे इस धरती पर और बचे रह जाएं। लेकिन इस गणना के समय यह भी दर्ज किया गया है कि बाघों के रहवास ( हैबिटैट ) का दायरा पहले से तकरीबन 20 हजार वर्ग किलोमीटर कम हो गया है। विशेषज्ञों की नजर में यह एक खतरनाक स्थिति है। इसका नोटिस केंद्रीय पर्यावरण एवं वन राज्यमंत्री जयराम रमेश ने भी लिया है। उन्होंने कोयला खनन व सिंचाई परियोजनाओं को बाघ संरक्षण के लिए खतरा बताया है।
इससे फर्क नहीं पड़ता कि बाघ सही ढंग से गिन लिए जाते हैं या नहीं। इन आंकड़ों का सिर्फ मनोवैज्ञानिक महत्व है। इनसे ज्यादा महत्व बाघ को बचाने वाली पहलकदमियों का है। उसे संरक्षित प्राणी घोषित करने और देश में टाइगर रिजर्व बनाने जैसी कोशिशें अभी इसलिए ज्यादा कामयाब नहीं हो पाई हैं , क्योंकि वे समस्याओं का निदान करने की जगह उन्हें बढ़ाने वाली ही साबित हुई हैं। मसलन यह देखा गया कि संरक्षित वन ही शिकारियों और तस्करों के लिए गारंटीशुदा शिकारगाह बन गए। दूसरी समस्या यह नोटिस की गई कि संरक्षित वनों के आसपास आवासीय निर्माण और खनन आदि गतिविधियों के कारण जंगल के प्राणी भोजन - पानी के लिए छोटे से दायरे में सिमट कर रह गए। भोजन की कमी की स्थिति में इसे तलाश करने के लिए इंसानी बस्तियों में उनकी घुसपैठ अनेक दुर्घटनाओं का कारण बनी। इन स्थानीय वजहों के अलावा अंतरराष्ट्रीय बाजार में बाघ की बड़ी कीमत मिलना भी उसे संकट में डाल रहा है।
बाघ के शरीर के तकरीबन हर हिस्से का कथित तौर पर यौनवर्धक दवाओं के निर्माण में इस्तेमाल होता है , इसलिए इसका शिकार रोकने में कठिनाई हो रही है। बेशक , वन विभाग के मुलाजिम इसमें अपना योगदान दे सकते हैं , लेकिन एक तो उनके पास संसाधनों का अभाव रहता है और दूसरे उनके हथियार आदि भी शिकारियों के असलहों के मुकाबले कमजोर होते हैं। सिर्फ इच्छाशक्ति के बलबूते बाघ के दुश्मनों से नहीं निपटा जा सकता , उसके लिए कई स्तरों पर प्रबंध करने की जरूरत है।
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