साल 2010 जो बीत गया कई मायनों में काफी खास रहा लेकिन बाघ प्रेमियों और इसके संरक्षण से जुड़े लोगों के लिये 2010 किसी बुरे सपने जैसा रहा जो फिलहाल बीत गया है। इस मामले में सबसे गंभीर बात है दुनिया भर में बाघों की घटती तादाद। हाल ही में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने बाघों की आबादी महज 3,500 बताई. इससे पहले डब्ल्यूडब्ल्यूएफ ने दुनिया भर में बाघों की तादाद 4000 के आसपास बताई थी. यानि 500 बाघों का अलग अलग कारणों से सफाया हो गया। जिसमें सबसे बड़ा कारण खाल और अंगों के लिये अवैध शिकार है ये तय है।
बाघों की या ये कहें कि पूरे वन्यजीवों पर साल 2010 काफी भारी बीता देश के अलग अलग हिस्सों में वन्यजीवों से जुड़े दर्दनाक हादसे सामने आये।
सबसे बुरा रहा सरिस्का का मामला जहां रणथमभौर से शिफ्ट किये गये एसटी1 को जहर देकर मारने का मामला सामने आया। जबकि सरिस्का, कॉर्बेट नेशनल पार्क के बाद सबसे हाई अलर्ट पर रहने वाला अभ्यारण है। और दुनियाभर की नजरें इस पर टिकी रहती हैं उसके बावजूद इस हादसा का होना बाघ के प्रति हमारी घोर लापरवाही को साफतौर पर दर्शाता है।
देश में दरअसल बाघ को बचाने का अभियान मशहूूर शिकारी, लेखक, और पर्यावरणविद् जेम्स एडवर्ड कॉर्बेट ने शुरू किया था। वो भी वक्त जब ये गिने चुने रह गये थे लेकिन तब भी इनकी तादाद आज से ज्यादा थी। लेकिन वे लोग जो बाघ के साम्राज्य या उसकी सीमा में रहते हैं उनमें बाघों को लेकर जबरदस्त नेगिटिविटी फैली हुई है और यही असली जड़ है कि अरबों खरबों रूपये स्वाहा होने के बावजूद हम कुदरत की इस अनमोल कृति को बचा नही पा रहे हैं।
लगातार बढ़ती जनसंख्या से जंगलों पर इतना दबाव पड़ रहा है कि जंगल पिछले एक दशक में अपनी वास्तविक सीमाओं से 47 प्रतिशत तक सिकुड़ चुके हैं. भारत और चीन जैसे ज्यादा आबादी और तेजी से विकास करने वाले देशों में तो स्थिति काफी खराब है क्योंकि सरकारी तंत्र का पूरा ध्यान इकोनॉमिक एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट पर है।
बावजूद इसके देश में बैलेंसड् इंडस्ट्रियल पॉलिसी और मिक्सड लैंडस्केप होने के कारण बाघ को बचाने की काफी गुंजाइश बचती है। बस जरूरत है उन लोगों का भरोसा जीतने और उन्हें अपने साथ लाने की जो बाघ को हमसे ज्यादा करीब से जानते हैं और हमसे ज्यादा बाघों के करीब रहते हैं।
बाघ बचाने की क़वायद के तहत भारत ने कुछ अच्छी पहल तो की हैं जिसके तहत भारत में सरकार ने जंगलों की सुरक्षा के लिए टाइगर टास्क फोर्स बनाने और टाइगर रिजर्व में या उसकी सीमा में बसे लोगों को दूसरी जगह विस्थापित करने के लिए विश्व बैंक के साथ 2000 करोड़ रुपये से भी अधिक की योजना बनाई है।
सुनने में तो ये बातें काफी प्रभावी लगती हंै, लेकिन खट्टे अनुभव ये लिखने को मजबूर कर देते हैं कि "दोस्तो ये भारत है यहां जब दिल्ली से 1 रूपया चलता है तो गांव के हिस्से में 10 पैसे भी आ जायें तो अपने को धन्य समझो" और जब विश्व बैंक से पैसा आयेगा तो कहीं ये कहावत न मिसाल बन जाये " अंधा बांटे रेवड़ी, मुड़-मुड़ अपनों को दे"।
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